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कविता

सुंदरियो

फणीश्वरनाथ रेणु


सुंदरियो-यो-यो
हो-हो
अपनी-अपनी छातियों पर
दुद्धी फूल के झुके डाल लो !
नाच रोको नहीं।
बाहर से आए हुए
इस परदेशी का जी साफ नहीं।
इसकी आँखों में कोई
आँखें न डालना।
यह 'पचाई' नहीं
बोतल का दारू पीता है।
सुंदरियो जी खोलकर
हँसकर मत मोतियों
की वर्षा करना
काम-पीड़ित इस भले आदमी को
विष-भरी हँसी से जलाओ।
यों, आदमी यह अच्छा है
नाच देखना
सीखना चाहता है।


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